Thursday, February 13, 2014

बढ़ते बलात्कार पर लगाम क्यों नहीं

बढ़ते बलात्कार पर लगाम क्यों नहीं

बेबस प्रसासन बुलन्द दरिन्दे - जिम्मेदारी समाज की भी


निर्भया 2012 काण्ड के बाद जहां बलात्कार जैसे संगीन जुर्म में कमी आनी चाहिए थी किन्तु लगता है कि इसमें बढोत्तरी होती जा रही है। रोज समाचार पत्रों व न्यूस चैनल में बलात्कार की खबर आम हो गई है। आए दिन गेंगरेप ओर छोटी छोटी लड़कियों से बलात्कार की खबरें आम होती जा रहीे है। कुछ दिनों के बाद लगेगा यह तो सामान्य सी घटनाऐ हैं और होती रहती हैं। अपराधियों में डर नाम की कोई चीज ही नहीं बची है। प्रसासन सुस्त है, कानून हाथ बांध कर बैठा है आर न्याय उसको मिलता है जिसके पास खरीदने की ताकत हो।


पुलिस और प्रषासन तो अक्सर पैसे और दवाव में काम करता है। नियम अंग्रेजो के जमाने के बने हैं, ऐसे हैँ कि उम्र बीत जाऐ किन्तु न्याय की उम्मीद करना बेमानी है बशर्ते आप समय पर खरीदने की ताकत रखते हों। कारण साधन व पैसे की कमी, स्टाफ की कमी, दवाव है, पैसा खा लिया है-खिला दिया है .... यह तो हमेशा से चलता रहा है ओर हमेशा चलता रहेगा। किरण बेदी, खेमका जैसे इमानदार अफसर कितने प्रतिशत होते हैं। प्रसाशन तंत्र को छोड़ दीजिए, समाज ने भी अपनी जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया है। बलात्कार जैसी घटना के बाद कुछ दिन चिल्ला लेने के बाद समाज और मीडिया चुप हो जाते हैं। कानून की कमजोरियों का फायदा उठाकर अपराधी बच जाते हैं।


पिछले 800-1000 साल की आर्थिक और सांस्कृतिक गुलामी और पिछले 200 साल और विशेषकर कर आजादी के बाद पढ़ाऐ जाने वाले गलत इतिहास ने हमारे समाज की समग्र सोच को कुन्द कर दिया है।


समाज अगर चाहे तो वह इन दरिन्दों के खिलाफ बहुत कुछ कर सकता है। बलात्कार के आरोपी का समाजिक बहिष्कार करना चाहिए। अगर आरोपी के परिवार वाले आरोपी का बचाव करते हैं तो उस परिवार का भी सामाजिक बहिष्कार किया जा सकता हैं। बलात्कार के आरोपी का बचाव करने वाले हर व्यक्ति, परिवार, समाज का बहिष्कार किया जा सकता है। जो मानवाधिकार संगठन अपराधी का बचाव करते हैं उनका भी बहिष्कार किया जा सकता है। समाज को चाहिए की हर उस इन्सान, परिवार, संस्था का साथ छोड़ दे, बहिष्कार करे, जो बलात्कारी का किसी भी प्रकार से समर्थन करते हैं। सभी को सोचना चाहिऐ की हमारे परिवार में भी महिलाऐ हैं, बच्चिया हैं।


सरकार को बलात्कार की सजा के लिए सख्त से सख्त कानून बनाना चाहिए। इस अपराध को सामान्य अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। यह जघन्य अपराध हैं। अपराधी को बीच चौराहे पर नंगा करके मारना चाहिए आर बाद में चैराहे पर ही फांसी दे दी जानी चाहिए। यह तालीबानी सोच हो सकती है किन्तु आज इसी नियम की जरूरत है। जब शरीर का एक हिस्सा कैंसर से ग्रस्त हो जाता है तो जान बचाने के लिए उस अंग की काटना पड़ता है क्योंकि और कोई इलाज नहीं होता है ठीक वैसे ही हमें समाज के इस जघन्य अपराधी वर्ग के साथ ऐसा ही वर्ताव करना पड़ेगा। जब तक अपराधी वर्ग में डर पैदा नहीं नहीं होगा अपराध कम नहीं होंगे। कहा जाता है कि डण्डे के डर से तो गली के कुत्ते भी डकैती का इल्जाम कुबूल कर लेते हैं। अगर अपराधी वर्ग में यह डर पैदा हो जाए तो विष्वास मानिए कि सालों, महीनों नहीं बल्कि दिनों में पूरे देष में बलात्कार जैसा जघन्य अपराध का नामोंनिषान मिट जाऐगा।


पुलिस, प्रशासन और समाज सभी को पता होता है कि समाज में कौन कौन उपद्रवी हैं। हमें भी पता होता है कि हमारे घर परिवार में, आस पड़ौस में कौन उपद्रवी बालक, सदस्य है। कौन बालक किस किस्म का है, कौन गलत संगत में फसा हुआ है। जैसे ही इस तरह का अपराध होता है अगर अपराधी के बारे में जानकारी होती है तो तुरन्द समाज और प्रषासन को जानकारी देकर हम अपनी जिम्मदारी निभा सकते हैं और बहुत हद् तक ऐसी घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है।